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लेखनी प्रतियोगिता -28-Mar-2022 बदमाश दिल

नाश्ता करने के बाद प्रवीण अपने कमरे में आ गया । मिर्च की जलन अभी खत्म नहीं हुई थी इसलिए वह थोड़ा रेस्ट करना चाहता था । पानी पीकर लह बिस्तर पर लेट गया । 
थोड़ी देर के बाद उसकी दीदी और रश्मि आईं । दीदी के हाथों में देसी घी का एक छोटा डब्बा था और एक हाथ में चम्मच था । दोनों सामने रखी कुर्सी पर बैठ गई । दीदी ने कहा 
"अभी भी जलन हो रही है न मुंह में" ? 
प्रवीण ने फीकी हंसी हंसते हुए कहा "नहीं दीदी, अब नहीं हो रही है" । 
"नहीं , तू झूठ बोल रहा है । मिर्च बहुत भयंकर थी उसमें । न जाने पूरा डब्बा ही डाल दिया था क्या दिव्या ने" ? 
"कोई नहीं दीदी । अब तो मैं भी भूल चुका हूं । तुम भी जाने दो ना" । 
"देख , मैं तेरे लिये देसी घी लाई हूँ । इसका लेप तालू में करने से जल्दी आराम आ जायेगा । रश्मि, लगा इसके तालू में घी" । 
"रहने दो ना दीदी । अब जलन ज्यादा नहीं है" । 
"तू चुप कर । रश्मि, देख क्या रही है, लगा घी" । 
"अच्छा ठीक है । अगर लगाना ही है तो मैं लगा लूंगा " । 
"नहीं, तू चुपचाप लेट जा और मुंह खोल दे । रश्मि लगायेगी घी" । 

अब तो घी लगना ही था । प्रवीण लेट गया और मुंह खोल दिया । रश्मि ने एक उंगली पर घी लगाया और उसके तालू में लगाने लगी । कभी कभी दोनों की नजरें टकरा जाती थी तो प्रवीण हलके से मुस्कुरा देता था और रश्मि नजरें झुका लेती थी । दीदी की निगाहों से यह बात छुप कैसे सकती है । वह मुस्कुरा दी और धीरे धीरे गाने लगी 

"दो दिल मिल रहे हैं, मगर चुपके चुपके ।
सबको हो रही है खबर चुपके चुपके " ।। 

प्रवीण दीदी की ओर देखकर मुस्कुरा दिया । धीरे से बोला "ऐसा कुछ नहीं है दीदी । गलतफहमी मत पालो" । 
"ये गलतफहमी नहीं है । क्यों , है क्या रश्मि" ? 

शर्म के मारे रश्मि का मुंह लाल हो गया । उसने अपना मुंह दूसरी ओर कर लिया । दीदी ने उसका चेहरा अपने दोनों हाथों से पकड़ कर अपने सामने किया और उसकी आंखों में देखकर बोली "ये आंखें क्यों झुका रखी हैं ? कोई पाप थोड़ी किया है ? प्यार ही तो किया है । प्यार करना कोई अपराध थोड़ी है पगली" । 

प्रवीण भी चुप ही था । बोला "ऐसा कुछ नहीं है दीदी । रश्मि जी का मुझे नहीं पता पर मेरे दिल में ऐसा कुछ नहीं है" । उसने कनखियों से रश्मि की ओर देखा । 

रश्मि को प्रवीण की यह बात बहुत नागवार लगी । उसे ऐसा लगा कि जैसे प्रवीण ने उसका दिल तोड़ दिया हो । घी लगाते लगाते उसके हाथ रुक गए । आंखें नम हो गई । वह धीरे से उठी और भाग गई । 

"देखा , तोड़ दिया ना बेचारी का दिल । तुम पुरुष लोग होते ही पत्थर दिल हो । तू प्यार नहीं करता है तो कोई बात नहीं मगर उसके मुंह पर तो कम से कम सीधे सीधे मत कहता । बेचारी का दिल तोड़ दिया । अब आराम मिल गया" ? 
"दीदी, मैं झूठ नहीं बोलना चाहता हूं । किसी प्रकार की कोई गलतफहमी उसके दिल में नहीं रहे । अभी तो उसके मन में प्रेम का बीज अंकुरित ही हुआ है इसलिए यह घाव ज्यादा गहरा नहीं है । सोचो कि अगर वह बहुत आगे निकल जाती और फिर उसे यह सब सुनने को मिलता तब क्या होता" ? 

प्रवीण की बात सुनकर दीदी बहुत खुश हुई । "तू इतना समझदार हो गया है, यह जानकर बहुत खुशी हुई । मगर एक बात ध्यान रखना कि रश्मि का दिल और ना टूटे, इसका खयाल रखना" । और दीदी चली गई । 

प्रवीण को ऐसा लगा कि उनकी बातें कोई छुपकर सुन रहा है । कौन हो सकता है वह ? खूब कयास लगाया मगर समझ नहीं आया । वह सो गया । घी से थोड़ा आराम मिल गया था उसे । 

लंच टाइम पर वह नीचे हॉल में आ गया । तब तक कुछ और मेहमान भी आ गये थे । हिना के मौसी मौसाजी, उनके बच्चे, मामाजी , मामीजी , बुआ जी वगैरह आ गये थे । खूब हलचल मच रही थी घर में । दो तीन हम उम्र लड़के और दो तीन लड़कियां और आ गई थीं अब । अब लड़कों का एक ग्रुप और लड़कियों का एक ग्रुप बन गया था । 

लंच परोस दिया गया । उधर औरतों ने भी "गारी" गाने के लिये मोर्चा संभाल लिया था । लड़कियां भी उनके साथ हीं बैठ गई । हालांकि उन्हें "गारी" आती नहीं थी । आजकल कौन गाता है गारी ? मगर हिना की मम्मी वगैरह को गारी गाने का बहुत शौक था । लड़कियों की ट्रैनिंग भी हो जायेगी इस बहाने । इसलिए "गारी" गाने का प्रोग्राम रख लिया ।  

गारी गाने का रिवाज बहुत पुराना है । जब श्रीराम जी और सीता जी का विवाह हो रहा था । अयोध्या से बारात जनकपुर आ गयी थी तब सीता जी के परिवार की और जनकपुरी की औरतों ने सबको खूब "गारी" गाईं थी । उस परंपरा को अभी भी कुछ जगह सहेजा गया है । गारी या तो जीजा, फूफा पक्ष को गायी जाती है या बहू के मायके वालों को । गारी गाने में हिना के फूफा, जीजा वगैरह के साथ प्रवीण का नंबर भी आ गया था । तो यह गारी गायी उन औरतों ने । 

प्रवीण अपनी मम्मी से पूछे 
मैं कै (कितने) बापों का जायो , 
रंग बरसैगो । 

गीत में ही जवाब मिलता है 
"दो अगल खड़े दो बगल खड़े 
दो चाकी नीचे खेल करें 
दो चूल्हे ऊपर दंड करें 
दो और करूंगी मेरे बेटा 
रंग बरसैगो । 

ये गारी प्रवीण ने पहली बार सुनी थी । उसकी हंसी फूट पड़ी । उसे पता नहीं था कि पहले के जमाने में इतनी हंसी मजाक भी होती थी । उसे इन गारियों में रस आने लगा । बीच बीच में उसकी निगाहें लड़कियों से जा टकराती थीं । आज खुशबू नाम की लड़की भी आई थी । वह वाकई खुशबू ही थी । इतनी सुंदर , इतनी नाजुक थी कि जैसे कोई उसे छू ले तो वह मैली हो जाये । उसके बदन की महक दूर दूर तक आ रही थी । प्रवीण की निगाहें बार बार खुशबू के दिल के दरवाजे पर दस्तक दे रही थी मगर खुशबू ने शायद अपने दिल के दरवाजे बंद कर रखे थे । इसलिए दोनों में कोई "आई कांटेक्ट" हुआ ही नहीं । प्रवीण उदास हो गया । प्रवीण सोचने लगा "इतना भी क्या अभिमान ? एक नजर देख लेती तो कम से कम चैन तो आ जाता । मगर , हाय रे मेरा दिल । अब क्या करें" । 

प्रवीण ने बाकी लड़कियों के चेहरे पर भी उड़ती उड़ती निगाह डाली । कभी दिव्या से टकरा जाती तो कभी नैना से । कभी पूजा से कभी अदिति से । जिससे भी निगाहें टकरातीं , उसके होठों पे एक मुस्कान खेल जाती । प्रवीण को महसूस हो रहा था कि जो भी लड़की मुस्कुरा कर रेस्पॉन्स दे रही है , इसका मतलब है कि वह लड़की उसे चाहने लगी है । यह सोचकर प्रवीण को बड़ी खुशी हुई । मगर अगले ही पल उसे यह ध्यान आया कि "खुशबू" ने तो अभी तक एक बार भी नहीं देखा उसे । जिससे दिल लगा है, वो देख नहीं रही । और बाकी लड़कियां पीछा छोड़ नहीं रही । अजीब इत्तेफाक है ।  खुशबू को पटाने का जुगाड़ सोचने लगा वह। 

क्रमश : 

हरिशंकर गोयल "हरि"
3.4.22 

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4 Comments

Pamela

04-Apr-2022 11:01 AM

आपकी कहानी हमेशा बेमिसाल होती है

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Hari Shanker Goyal "Hari"

04-Apr-2022 05:54 PM

जी, लगता तो है । पर लगने से क्या होता है सर जी । खुशबू को भी प्रवीण पसंद आये तब ना । 💐💐🙏🙏😀😀

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Hari Shanker Goyal "Hari"

04-Apr-2022 05:55 PM

आपका यह कमेंट मेरे लिए सबसे बड़ा तोहफा है । हृदय से आभार । 💐💐🙏🙏

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Abhinav ji

03-Apr-2022 08:12 AM

Nice👍 lagta hai praveen ko khushbu pasand agyi. Nice part sir

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